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अयोध्या एक तहज़ीब के मर जाने की कहानी है..।।

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अयोध्या एक तहज़ीब के मर जाने की कहानी है..।। कहते हैं अयोध्या में राम जन्मे। वहीं खेले कूदे बड़े हुए, बनवास भेजे गए। लौट कर आए तो वहां राज भी किया। उनकी जिंदगी के हर पल को याद करने के लिए एक मंदिर बनाया गया। जहां खेले, वहां गुलेला मंदिर है, जहां पढ़ाई की वहां वशिष्ठ मंदिर हैं, जहां बैठकर राज किया वहां मंदिर है, जहां खाना खाया वहां सीता रसोई है, जहां भरत रहे वहां मंदिर है, हनुमान मंदिर है, कोप भवन है,  सुमित्रा मंदिर है, दशरथ भवन है, ऐसे बीसीयों मंदिर हैं और इन सबकी उम्र 400-500 साल है। यानि ये मंदिर तब बने जब हिंदुस्तान पर मुगल या मुसलमानों का राज रहा अजीब है, न! कैसे बनने दिए होंगे मुसलमानों ने ये मंदिर..? उन्हें तो मंदिर तोड़ने के लिए याद किया जाता है। उनके रहते एक पूरा शहर मंदिरों में तब्दील होता रहा और उन्होंने कुछ नहीं किया! कैसे अताताई थे वे, जो मंदिरों के लिए जमीन दे रहे थे। शायद वे लोग झूठे होंगे जो बताते हैं, कि जहां गुलेला मंदिर बनना था, उसके लिए जमीन मुसलमान शासकों ने ही दी। दिगंबर अखाड़े में रखा वह दस्तावेज भी गलत ही होगा, जिसमें लिखा है, कि मुसलमान राजाओं ने मंदिरों के बना

इतिहास

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#इतिहास "....मीना आदिवासियों को आर्यों के आगमन काल से ही प्रायः स्थानीय एवं बाह्य शक्तियों से दोहरा युद्ध करना पड़ा। जब ये विरोधी शक्तियॉ एक-एक करके मीनाओं से पराजित होने लगी, तो उन्होंने संगठन बनाकर मीना-शक्ति को कुचलना प्रारम्भ किया। मध्यकाल का मुग़ल-राजपूत एवं ब्रिटिश काल का राजपूत-अंग्रेज सहयोग इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। गुरिल्ला युद्ध पद्धति के जन्म दाता आदिवासी मीनाओं को यदि स्थानीय शक्तियों द्वारा साथ दिया गया होता, तो जम्बू द्वीप में कभी भी विदेशी शक्तियाँ अपनी जड़ें नहीं जमा पाती। प्राचीन मत्स्यों के यशस्वी उत्तराधिकारी मीनाओं गौरवपूर्ण आख्यानों को यदि भारतीय इतिहासकार इतिहास में संभालकर रखने का प्रयत्न करते, तो निःसंदेह देश के इतिहास की प्रामाणिकता एवं उपादेयता में वृद्धि होती" ~@रावत सारस्वत् (मीणा इतिहास)

"लूट" तब और अब

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"लूट" तब और अब...💸 ~~~~~~~~~~~~~~~        सत्ता और पूंजी की ताकत के मार्फत गुलाम बनाए गए भारत में ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी‘ हिंदुस्तान को आर्थिक रूप से निचोड़ कर धन को ब्रिटेन पहुंचाने के लिए इतिहास में कुख्यात है। टैक्स और टैक्स के नाम पर चोरी के माध्यम से ब्रिटिश शासकों ने 1765 से 1815 ई. के बीच भारत से प्रतिवर्ष औसतन 1,80,000 पाउंड निचोड़े। लंदन में फ्रांस के राजदूत कॉम द शाटेल’ने लिखा था कि ’यूरोप में कुछ ही राजा होंगे जो ईस्ट इंडिया कम्पनी के निदेशकों से ज्यादा अमीर होंगे।’ तात्पर्य है, कि उस दौरान कंपनी अधिकारियों ने हिंदुस्तान की जनता को जैसा चाहा वैसे लूटा। इस तरह की लूट के समकालीन इतिहास में बहुतेरे उदाहरण है।– 🏴 1757 ई. में हुआ प्लासी युद्ध के पश्चात रॉबर्ट क्लाइव जब पहली बार इंग्लैंड लौटा, तो अपने साथ 2.3 करोड़ पाउंड निचोड़ कर ले गया और इस धन राशि ने उसे यूरोप के सर्वाधिक अमीर लोगों की पंक्ति में ला खड़ा किया। क्लाइव 1765 में पुन: भारत लौटा और 2 वर्ष बाद एक बार फिर 4 करोड़ पाउंड की धन राशि लेकर इंग्लैंड पहुंचा। भारत में लूट से इकट्ठे किए गए इस तरह के धन से इन्होंने इं

इंदिरा, अमरीका और बांग्लादेश..⚔️

बांग्लादेश को पाकिस्तान से अलग एक आज़ाद मुल्क बनाने में शेख मुजीबुर्रहमान के अलावा किसी और नेता का हाथ रहा तो वो इंदिरा गांधी थीं। इंदिरा ने दुनिया के सामने बांग्लादेश की समस्या रखने की ठानी थी। उन्होंने इस मसले पर दुनिया को अपने पक्ष में करने के लिए विशेष दूतों को थाइलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, हांगकांग, जापान और ऑस्ट्रेलिया तक दौड़ाया। खुद वो सोवियत संघ, ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, ऑस्ट्रिया गई। इन सबमें अमेरिकी दौरा सबसे ज़्यादा कड़वा था जहां राष्ट्रपति निक्सन भारत की इस मामले में भूमिका को नापसंद करते थे।  वो चाहते थे कि इंदिरा गांधी पाकिस्तान से सुलह करके बांग्लादेश का मुद्दा भूल जाएं लेकिन इंदिरा गांधी मानने को तैयार नहीं थीं। उन्होंने निक्सन से समर्थन ना मिलने के बावजूद वॉशिंगटन प्रेस क्लब में भाषण दिया। ये इंदिरा थीं जब उन्होंने माना कि अपनी आत्मरक्षा में उन्होंने प्रेस की आलोचना करने से परहेज नहीं किया, बावजूद इसके ये प्रेस था जिसने बांग्लादेश के मामले को दुनिया भर में उठाकर बड़ा बनाया।  निक्सन इंदिरा से इतना चिढ़ रहा था कि भारत के सैनिक हिस्सों-पुर्ज़ों के एक्सपोर्ट लाइसेंस

सिंधु घाटी सभ्यता में मत्स्य पूजा...🏹🐬🐟

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        डा.करमाकर का विचार है, कि मत्स्य या मछली के प्रतीक चिन्ह की भगवान शिव के रूप मे पूजा मीना लोगो के देश मे प्रचलित थी एवं यह पूजा पूर्व वैदिक काल से संबंधित थी। अतः हम यह निश्चित रूप से कह सकते है कि मत्स्य भगवान की पूजा का विकास इन्हीं लोगो की भूमि से शुरु हुआ।      मोहनजोदडो के समय ईश्वर के सबसे लोक प्रिय रूप मछली या मत्स्य था। मोहन जोदडो की एक मुद्रा मे एक मछली के शिर वाला मनुष्य जो कि मानव आकृति से बडा है जिसके मछली के सिर पर सींग लगे हुये है, इससे प्रतीत होता है कि यह ईश्वर का ही एक प्रतीक था। इसी सील के कोने पर एक पेड के नीचे एक मानव आकृति है जिसके सिर पर त्रिशुल अंकित है भी नजर आती है।     नादुर का ईश्वर मछली एवं मानव के संयुक्त रूप पूजा जाता था। मोहनजोदडो की मुहरो में शिव को अधिकांशतया मीन नेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है। (ए.पी.करमाकर -द रिलिजन आँफ इंडिया )               स्कंद पुराण मे मीन (मछली) एवं शिव का संबंध जोडा गया है इसके एक श्लोक मे  शिव को मीन या मीनाओ का राजा (मीननाथ/मीनेश) कहा गया है ।              विष्णु धर्मोतर पुराण में मत्स्यप्रदेश एवं कश्मीर में मछली

राजनीति की वर्तमान परिस्थिति में कांग्रेस और भाजपा..🌳🌴

संघ का इतिहास, साजिशों का इतिहास रहा है। कांग्रेसी इनका मुकाबला नहीं कर सकते। नरेंद्र मोदी (आरएसएस) के सत्ता में आने के साथ देश पर फासीवाद का ख़तरा बढ़ गया है। मोदी सरकार की नीतियों से पूरे देश में अराजक स्थितियां बनती चली जा रही हैं। सरकार ऐसे-ऐसे मुद्दे को सामने ला रही है, जिनका कोई जनता की समस्याओं से कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन इन मुद्दों के माध्यम से सरकार अपनी नाकामी छुपाने की कोशिश करना चाहती है। कभी राष्ट्रवाद का मुद्दा उठाया जाता है तो कभी भारत माता की जय का। खास बात ये है कि सरकार और आरएसएस के लोग एक साथ ही कही तरह की बातें बोलते हैं, ताकि जनता गुमराह रहे। ये छल-छद्म की राजनीति कर रहे हैं, जिसमें इन्हें महारत हासिल है। दो साल होने को आए, मोदी सरकार ने एक भी वादा पूरा नहीं किया है। जनता के सामने जो सबसे बड़ी समस्याएं है, उनके निदान के प्रति मोदी सरकार पूरी तरह उदासीन है। दूसरी तरफ, यह सरकार ऐसे मुद्दों के हवा दे रही है, जिनमें इसके विरोधी भी फंस जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आंध्र प्रदेश सेंट्रल यूनिवर्सिटी के शोध-छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के बाद खड़ा हुआ आंदोलन और जेएनयू

मेवल का मीना विद्रोह

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मेवल का मीना विद्रोह --------------------------- रावत सारस्वत ने अपनी पुस्तक के पृष्ठ – 170 पर लिखा है, कि राजस्थान में मीना एक ठेठ आदिवासी जाति है जिसने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष भी जारी रखा और शताब्दियों तक शासक वर्ग को सुख चैन की नींद नही सोने दिया। राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक सभी  दृष्टियो से शोषित और पीड़ित होने पर भी मीनो का शौर्य और साहस अदभ्य रहा। उन्होंने महाराणा प्रताप सहित मेवाड़ के सभी राजाओ से संघर्ष किया।    महाराणा राजसिंह के समय हुए मीना विद्रोह का वर्णन करते हुए गोरीशंकर हिराचंद ओझा ने उदयपुर राज्य का इतिहास भाग-2 पृष्ट-543 में लिखा है –“ मेवाड़ के दक्षिण हिस्से का भाग मेवल नाम से प्रसिद्द है जहाँ जंगली मीना जाति की आबादी अधिकतर है। पुराने समय में मीना बहुल इस क्षेत्र को मेवल के नाम से पुकारा जाता था। ” डॉ. देवी लाल पालीवाल ने प्राचीन पिंगल काव्य और महाराणा प्रताप के पृष्ट-9 में लिखा है की “मेवाड़ के दक्षिण भाग के रहने वाले पर्वतीय लोग मीना कहलाते है। ये लोग आस पास के इलाको में सदैव ही अशांति,उत्पात एवं लूटमार मचाते रहते थे। ”सच तो यह था की मीना अपने