छोटा सा गांव मेरा..

छोटा सा गांव मेरा..🌳🌴
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छोटा सा गाँव मेरा, पूरा बिग बाजार था...
एक नाई, एक मोची, एक काला लुहार था..
छोटे-छोटे घर थे,
हर आदमी बड़ा दिलदार था....
कही भी रोटी खा लेते,
घर-घर भोजन तैयार था....
बाड़ी की सब्जी मजे से खाते थे,
जिसके आगे शाही-पनीर बेकार था....
दो मिनट में मैगी ना,
झटपट दलिया तैयार था..
नीम की निम्बोली और शहतूत का सदाबहार था..
छोटा सा गाँव मेरा, पूरा बिग बाजार था..

अपना घड़ा कस कर बजा लेते,
समारू पूरा संगीतकार था...
मुलतानी माटी से तालाब में नहा लेते,
साबुन और स्विमिंग पूल बेकार था..
और फिर कभी कबड्डी खेल लेते,
हमें कहाँ क्रिकेट का खुमार था..
दादी की कहानी सुन लेते,
कहाँ टेलीविजन और अखबार था...
भाई-भाई को देख के खुश था,
सभी लोगों में प्यार था..
छोटा सा गाँव मेरा पूरा बिग बाजार था...

~©भूरसिंह मीणा

Comments

  1. पढ़कर अपने बचपन के दिन यादों में हरे हो गये. बहुत ख़ूब. धन्यवाद !

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  2. बहुत ही शानदार कविता हे

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