मेवल का मीना विद्रोह

मेवल का मीना विद्रोह
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रावत सारस्वत ने अपनी पुस्तक के पृष्ठ – 170 पर लिखा है, कि राजस्थान में मीना एक ठेठ आदिवासी जाति है जिसने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए निरन्तर संघर्ष भी जारी रखा और शताब्दियों तक शासक वर्ग को सुख चैन की नींद नही सोने दिया। राजनीतिक आर्थिक तथा सामाजिक सभी  दृष्टियो से शोषित और पीड़ित होने पर भी मीनो का शौर्य और साहस अदभ्य रहा। उन्होंने महाराणा प्रताप सहित मेवाड़ के सभी राजाओ से संघर्ष किया।
   महाराणा राजसिंह के समय हुए मीना विद्रोह का वर्णन करते हुए गोरीशंकर हिराचंद ओझा ने उदयपुर राज्य का इतिहास भाग-2 पृष्ट-543 में लिखा है –“ मेवाड़ के दक्षिण हिस्से का भाग मेवल नाम से प्रसिद्द है जहाँ जंगली मीना जाति की आबादी अधिकतर है। पुराने समय में मीना बहुल इस क्षेत्र को मेवल के नाम से पुकारा जाता था। ” डॉ. देवी लाल पालीवाल ने प्राचीन पिंगल काव्य और महाराणा प्रताप के पृष्ट-9 में लिखा है की “मेवाड़ के दक्षिण भाग के रहने वाले पर्वतीय लोग मीना कहलाते है। ये लोग आस पास के इलाको में सदैव ही अशांति,उत्पात एवं लूटमार मचाते रहते थे। ”सच तो यह था की मीना अपने अधिकारों की मांग कर रहे थे यह उनका स्वतंत्रता संग्राम था इस जमी भोम के असली मालिक होने के नाते। महाराणा प्रताप को भी उनके विरोध का सामना करना पड़ा था पर विदेशी आक्रमण के समय भरपूर सहयोग भी मिला।
सन 1662 में मेवल के मिनो ने सर उठाया, जिससे उनका दामन करने के लिए मानसिंह सारंग देवोत आदि सरदारों के नेतृत्व में सेना भेजी। कड़े संघर्ष के बाद मेवाड़ सेना को विजय मिल सकी। इस विजय पर सिरोपाव व यह प्रदेश उन्हें के हवाले कर दिया। राजप्रशस्ति महाकाव्य में भी इस घटना का उल्लेख है।

-पीएन बैफलावत

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