आर्य और राक्षस..

आर्यों का मूल स्थान सेन्ट्रल एशिया था। आर्य पशु पालन का काम करते थे । आर्य जब भारतीय उप महाद्वीप में आये तो यहाँ घने जंगल थे । आर्यों को गायों के लिए घास के मैदानों की ज़रूरत थी। मैदान तैयार करने के लिए आर्यों नें जंगलों को आग लगानी शुरू करी। इसे आर्य यज्ञ कहते थे, लेकिन भारतीय मूल निवासी जंगल पर आधारित जीवन जीते थे। इसलिए मूलनिवासी जंगल में लगी हुई आग को बुझा देते थे।
इसीलिये आर्य कहते थे, कि ये राक्षस हमारे यज्ञ में बाधा डालते हैं। भारत के मूल निवासी चूंकि जंगल की रक्षा करते थे इसलिए उन्हें रक्षक या राक्षस कहा गया। आर्यों के धर्मग्रंथों में राक्षसों का वर्णन ध्यान से पढ़िए
उसमें लिखा गया है कि राक्षस काले रंग के होते थे, राक्षसों के घुंघराले बाल होते थे, राक्षसों के सींग होते थे। राक्षसों का यह वर्णन ठीक आदिवासियों का वर्णन है । भारत के मूल निवासी सांवले रंग के थे। घुंघराले काले बालों वाले थे। आज भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी सींग लगा कर नाचते हैं। यज्ञ की अग्नि की रक्षा के लिए राजा का बेटा जंगल में जाता है। राजा का बेटा ताड़का राक्षसनी का वध करता है। ताड़का यानी ताड़ी पीने वाले समुदाय की महिला। ताड़कासुर यानी पेड़ से निकली ताड़ी पीने वाले असुर अर्थात आदिवासी।
यानी राजा का बेटा भारत के आदिवासियों की हत्या करता है। उसे आर्य ग्रन्थ वीरता की गाथा के रूप में दर्ज करते हैं, और उस राजा के बेटे को अपना राष्ट्रीय आदर्श घोषित करते हैं। और आज भी हर साल ताड़कासुर वध का उत्सव मनाते हैं।

मैं आपको यह पुरानी कहानी इसलिए सुना रहा हूँ
ताकि आप यह समझ सकें, कि हमारे शासन द्वारा
आदिवासियों की आज जो हत्याएं करी जा रही हैं। आप उसे क्यों स्वीकार कर लेते हैं ? असल में आदिवासियों को मार कर उनकी ज़मीनों पर कब्जा कर लेना हमारी परम्परा है, इस परम्परा को हम अपना धर्म मानते हैं। उदहारण के लिए कुछ दिनों पहले ही 
छत्तीसगढ़ के पेद्दा गेलूर गाँव में हमारे सुरक्षा बलों नें चालीस आदिवासी औरतों पर यौन हमला किया है। तीन महिलाओं नें सोनी सोरी के साथ आकर थाने में बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाई थी। इनमें एक चौदह साल की बच्ची भी थी। लेकिन इस घटना के बाद आज किसी को गिरफ्तार नहीं किया गया है।

लेकिन इस सब का भारत के सभ्य, शिष्ट, और महान संस्कृति के वाहकों के मन में ज़रा सा भी रोष नहीं है।
सोनी सोरी के गुप्तांगों में पत्थर भरने पुलिस अधिकारी को भारत के राष्ट्रपति नें वीरता पुरस्कार दिया।
उडीसा की आरती मांझी के साथ सुरक्षा बलों नें सामूहिक बलात्कार किया और उसे पांच फर्जी मामलों में फंसा कर जेल में डाल दिया। आरती मांझी पाँचों मामलों में निर्दोष पायी गयी। लेकिन आज तक उसके साथ बलात्कार करने वाले किसी सिपाही के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं करी गयी। पन्द्रह साल की आदिवासी लडकी हिडमे के साथ थाने में बलात्कार कर के उसे सात साल तक जेल में रखा गया और फिर इसी साल उसे निर्दोष घोषित कर के घर भेज दिया। आदिवासी महिला लेधा के साथ पुलिस वालों नें एक महीने तक सामूहिक बलात्कार किया। ऐसा करने वाले पुलिस अधिकारी कल्लूरी को भी भारत के राष्ट्रपति नें वीरता पुरस्कार दिया

आप कह सकते हैं, कि मैं क्यों अतीत का रोना रोने बैठ गया हूँ। बेशक हम अपना वर्तमान बेहतर बना सकते हैं, लेकिन उसकी शुरुआत तो कीजिये, पिछली गलती स्वीकार कर लीजिये। सही रास्ते पर चलने के लिए सहमत हो जाइए। भारत में भी शांति और प्रेम का वातावरण बन सकता है। वरना हमारी नफरत और लालच हमें भयानक हालात में पहुंचा ही देगी
और उसके लिए ज़िम्मेदार कोई और नहीं हम खुद ही होंगे

( संदर्भ स्रोत - वोल्गा से गंगा - लेखक राहुल संकृत्यायन, वयं रक्षामः - लेखक आचार्य चतुरसेन, सामाजिक विज्ञान की छठवीं ,सातवीं और आठवीं की इतिहास की एनसीआरटी की पाठ्य पुस्तक )

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