आदिवासी मीणा समाज की ध्वस्त होती ऐतिहासिक धरोहर.... संरक्षण ज़रूरी...
राजपूतों के उदय से पूर्व राजस्थान में उत्तर से लेकर दक्षिण तक दो ही प्रमुख जनजातियां थी। मीणों एवं भीलों के यहाँ अनेक गणराज्य थे। उन्होंने कई वर्षों तक इन गणराज्यों पर किया। राजस्थान में आज भी ऐसे नगर और कस्बे विद्यमान है जिन्हे इन जनजातियों के तत्कालीन शासकों ने बसाया था और जो इन गणराज्यों की राजधानियाँ रहे थे। परन्तु रजवाड़ों और राजा-महाराजाओं पर आश्रित इतिहासकारों ने तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर यह प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि ये सारे नगर-कस्बे राजपूत शासकों द्वारा बसाये गए है।
राजपूतों ने इन जनजातियों के गणराज्यों को युद्ध व छल-कपट से हथिया लिया था। आर्थिक एवं सामाजिक दृष्टि अस्तित्व-हीन होकर भी मीणा जनजाति समुदाय सदैव अपने अस्तित्व को बनाये रखने की चिंता में लगा रहा। उन्हें अपने इतिहास को सुरक्षित बनाये रखने का अवकाश ही नहीं मिला। इस प्रकार यहाँ की मीणा जनजाति का इतिहास किंवदंतियों, जन -श्रुतियों, उनकी आख्यायिकाओं व चारण-भाटों बहियों में ही सिमट कर रह गया। मीणा जनजाति के कतिपय वयोवृद्ध पुरुषों ने अपनी जाति की कुछ प्रमुख ऐतिहासिक घटनाओं को किंवदंतियों के रूप में पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनाये रखने का सफल प्रयास किया है। यधपि इतिहास इन घटनाओ के बारे में आज भी मौन है, तथापि ये जनश्रुति विश्वसनीय ही बन गयी है। क्योंकि यह बात सत्य है कि जिन तथ्यों को इतिहास विस्मृतियों गर्त में निपातीत करता है, उन्हें जनश्रुतियों और पुरातन परम्पराएँ ही अक्षुण्य बनाये रख सकती है। अत; आज हमें हमारी ध्वस्त होती आदिवासी धरोहर, इतिहास एवं परम्पराओं का संरक्षण करना अतिआवश्यक है।
-------- साभार डा. यशोदा मीणा (मीणा जनजाति का इतिहास)
meenabs1980@gmail.com

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