मारवाड़ के मीणा..

मारवाड़ का गोडवाड़ मीना राज्य
---------------------------------------
          प्राचीन काल से  सम्पूर्ण  गोडवाड़ पर मीना आदिपत्य रखते थे | अरावली श्रंखला की गोद में बसा नाडोल उसकी राजधानी थी गोडवाड़ वर्तमान पाली सिरोही जालोर का ही अधिकांश हिस्सा  है | हाडा चौहान राजवंश के पृष्ट -27 पर राव गनपत सिंह चितलवाना ने लिखा है की सांभर के वक्पतिराज के देहांत और बड़े भाई के सिंहासनासीन होने व मन मुटाव के कारण लक्ष्मण या लाखन ने नवीन भूमि अधिग्रहण करने के लिएसांभर देश के एक सीमांत प्रदेश जिसके उत्तर में मंडव्य पुर ,दक्षिण में हस्तिकुंडी,पश्चिम में जबालिपुर के राज्य थे और पूर्व में मेर जाति वालों के अधीन था जो जितने के लिए अपने मन माफिक पाया यानि 958 ई० में नाडोल में मेर मिनाओ के राज्य थे उक्त पुस्तक के पृष्ट-30 पर उल्लेख है की लक्ष्मण ने अपने भुजबल एवं अटल दृढ़ता से विक्रम संवत 1022 महा सुदी 2 के दिन अर्थात सन 967 के आस पास नाडोल पर अपने राज्य की स्थापना की | यहाँयह स्पष्ट करना उचित होगा की लक्ष्मण को मेर मिनाओ से नाडोल का राज्य प्राप्त करने में लगभग 9 साल का समय लगा उस दौरान वह मिनाओ की सेवा में अवश्य रहा होगा | फिर उचित अवसर पा धोखे से राज्य छिना होगा |
       पंडित विश्वेश्वर नाथ रेऊ ने मारवाड़ के इतिहास में लिखा है की वि सं 1081 अर्थात सन 1025 में जिस समय महमूद गजनवी ने सोमनाथ पर चढ़ाई की थी,उस समय वह नाडोल व बाली की तरफ से होता हुवा उतार गया था | इसी तरह हाडा चौहान राजवंश के पृष्ट-43 पर भी उल्लेख आया है किमहमूद गजनवी नाडोल और आधुनिक बाली सहित हस्तिकुंडी गवलकुंडा होते हुए गया था उस समय नाडोल के आस पास नारलाई,असि, हस्तिकुंडी गवलकुंडा,बीजापुर के छोटे छोटे राज्य थे | सभी को लुटा और नष्ट किया | मेर मिनाओ ने भी तुर्क सेना से जबरदस्त संघर्ष किया | उस क्षेत्र के लोगो में किवदंती है की मिनाओ ने गजनवी से काफी धन लुट लिया था | हाडा चौहान राजवंश के पृष्ट-49 पर उल्लेखानुसार विक्रम संवत व सन 1193 में कुतुबुद्दीन ऐबक के आक्रमण में चौहान वंश पूर्णत नष्ट हो गया | जीवित रहे राजकुमार रेन्सी कुछ दिन हदेचा व सांचौर में रहकर भैसरोड़-बम्बवादा चला गया | हदेचा से निकलकर जाने के कारण उनके वंसज हाडा कहलाये |
        कर्नल जेम्स टॉड कृतराजस्थान का पुरातत्व एवं इतिहास खंड-1 जिसका संपादन विलियम कुर्क ने किया और हिंदी अनुवादक डॉ धुर्व भट्टाचार्य के पृष्ट-308 पर उल्लेख्नुसार चितौड़ के राणा सांगा के छोटे भाई और राणा रायमल के निष्काशित पुत्र पृथ्वीराज सिसोदिया ने अपने पिता को अपने क्षमता दिखने के लिए सन 1509 के आसपास अपना राज्य छोड़ गोडवाड़ में बाली की ओर चल दिया | उस समय इस क्षेत्र में मूल आदिवासी मीना काबिज थे | राजपूतों ने उनके शासन में हस्तक्षेप कर विजय प्राप्त की थी | मीना जाती के एक रावत ने पुनः अपने प्राचीन क्षेत्रो पर अधिकार कायम कर लिया था | वह समतल क्षेत्र में स्थित नारलाई नामक नगर में अपना छोटा सा दरबार लगाया करता था और राजपूत भी उसकी सेवा करते थे | एक व्यापारी ओझा की सलाह से पृथ्वीराज सिसोदिया उसकी सेना में भर्ती हो गया | विश्वास अर्जित कर कुछ वर्षो बाद अहेरिया उत्सव पर जब अधिकांश सेनिक अवकाश पर घर भेज दिया गए थे उचित अवसर जान विश्वासघाती पृथवीराज ने आक्रमण कर मीना सरदार की हत्या कर राजधानी को आग के हवाले कर दिया अधिकांश निहत्य सेनिको को मार राज्य को हस्तगत कर लिया | देसुरी को छोड़ सम्पूर्ण गोडवाड़ पर कब्ज़ा कर लिया | पृथवीराज के मेवाड़ चले जाने पर मीना लोगो ने इस क्षेत्र पर पुनः अधिकार कर लिया |
      जालोर पर प्राचीनकाल से ही जाला मीना का राज्य था मिनाओ के कुल गुरु रहे नाथ संप्रदाय के जालंदर नाथ और गोरखनाथ के प्राचीन स्थान भी यही है मिनो ने खिलजी की अधीनता स्वीकार नहीं की तब  कान्हड़ देव सोनगरा चौहान खिलजी दरबार में हाजरी भरने की एवज में 1294 में जालोर राज पाया | एक दिन गोठ देने के बहाने से बुलाकर अधिकांश मीना मुखियाओ का कत्लेआम कर दिया | पर मिनाओ ने संघर्ष करना नहीं छोड़ा अपना स्वतन्त्र संघ्रम निरंतर जारी रखा |   

-पी एन बैफलावत

Comments

  1. भाई ये मेर थे मीणा नही । हा ये आदिवासी थे पर मेर अलग है और मीणा अलग है|मीणा साम्राज्य कोटा से जयपुर कीओर था ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. कुछ मेव अपने को राजपूतों से जोड़ते है जबकि हकीकत यह है कि वे मीणा ही थे। इसी तरह मध्यप्रदेश के रावत खुद को राजपूत कहलाना पसंद करते थे लेकिन अब उनमें भी मीणा कहलाने की होड़ मची है। समय के साथ जातियों में नये वर्ग बनते है जो धीरे-धीरे नई जातियों का रूप ले लेते है। चीता और महर मीणाओं के ही गौत्र है।

      Delete
    2. सभी मेव मीणा नही हे..
      मेवो मे तोमर भी हे और यादोवंशी भी और कछवाहे भी

      Delete
    3. Bhai मैर hi meena h or aapne suna hi hoga ki tejaji jab cow lene gaye the tab मैर gotr ke meena se hi youdh kiya tha����

      Delete
  2. जय मीणा समाज जय मीणा एकता

    ReplyDelete
  3. मेर और मीणा दोनों अलग जाति हे। और जो मेर मीणा हे।
    O असल में मेर सरदार ने किसी मीणा समाज की युवती जो अती सुंदर चतुर होने के कारण उसे राजपूत समझकर शादी करली थी।लेकिन जब उसे बाद में पता चला तो मेर सरदारों ने उस युवती को वापस अपने पीहर भेज दिया। लेकिन उस युवती से उत्पन संताने मेर मीणा कहलाने लगे।
    ,हिंदू धर्म में बाप के नाम को संतान के साथ जोड़ा जाता है। इसलिए मेर मीणा मीणा नहीं हे। O मेर ही हे।

    ReplyDelete
    Replies
    1. No merwada pr raj krnai kai Karna mer meena khlatai hai

      Delete
  4. मीणा व मीना एक ही समुदाय है ये लोगों के सोचने व समझने की विचारधारा पर निर्भर करता है हम मीणा आदिवासी (tribe) है बाकी सभी की जैसी विचारधारा
    जय जौहार जय आदिवासी

    ReplyDelete
  5. जय जोहर जय आदिवासी (जय श्री गोतम ऋषि नमः)

    ReplyDelete
  6. भारतीय जाती व्यवस्था पुस्तक में इतिहासकार रिजले ने राजपूतों की उत्पत्ति मीणों से बताइ गई है तथा राजस्थान के इतिहास में श्री गहलोत जी ने अग्नि कुंड की कल्पना को मीणों का शुद्धिकरण कर राजपूत संघ का निर्माण बताया गया है।

    ReplyDelete
  7. लोग मेरों को आधे राजपूत और आधे मीना कहते है लेकिन पिता की जाती ही बेटे की जाती होती है राजपूत राजा पृथ्वी राज चौहान के बेटे ने मीणा युवती से शादी करी राजपूत समझकर लेकिन जब पता चला की वह मीना है तो उसे वापस भेज दिया युवती के गर्भ से पैदा हुए राजपूत राजकुमार के वंसज मेर है हाँ मेर और मीणा दोनों आदिवासी जातियां है हलाकि मेर ओबीसी में आते है और मीणा st में एं दोनों जातियों में काफी गहरा संबंध है दोनों जातियां साथ में लूटपाट और डकैती का काम करती थी तेजाजी की कहानी में गुजरी की गायें मेर मीणा आदिवासियों ने चुराई थी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. पूर्व में राजपूत जाति के नाम से कोई उल्लेख नहीं मिलता है।
      जबकि मेर जाति का उल्लेख प्राचीन समय से मिलता है।तथा संस्कृत में मिहिर नाम से भी जाना जाता है।वल्लभी के मैत्रक राजवंश उल्लेख

      Delete
    2. Bhai mer jati Ajmer per chauhano se pahle hi Raj Karti thi jab Chauhan Sambhar per Raj karte the usi samay Ajmer per mero ka Sasan tha Mohammad gazanaybi ke bad Rajasthan per muslmano ke akarman jayada hone loge isliye sambhar ke chauhano ne mero se madad magi isliye mero ne chauhano Ko Ajmer me jagah di us samay chauhano or mero ke bich sadi samband the isliye mero ne chauhano ki madad ki use samay mer jatiChauhan se jayada powerful thi Inka Sasan chauhano se kai bade area per tha use samay Rajput koi jati nahi rajao ke beech me sadi samband hote the use Tahar chauhano or mero me bhi sadi samband hue chauhano or mero ne milkar muslmano Ko Rajasthan se khedheda fir Chauhan ke risthe dhili se huye isliye chauhano ka name bhi hua or dhili per Sasan bhi isliye aaj bhi Ajmer ke Charo or Rawat jati hi jayada milti Onika Sasan angrejo ke aane se purve tak Bna rha isliye Rawat aaj Rajput bhi kahte

      Delete
    3. Kuch pta nahi ho to falatu kyu likhate ho mer jati chauhano see pahle hi ajmer per Raj karti thi chauhano or Mero ke Sadi samband chauhano ke ajmer and pahle bhi the hakikat me to Mero ne hi chauhano ko saran di the

      Delete
  8. मेर या मेद जाती का उल्लेख प्रचीनकाल से मिलता हे राजपूत शब्द 10 वी सदी से सुरू होता हे
    10 वी सदी मे मुहमूद गजनवी के आक्रमण के समय मेदपाट राज्य के सभी सभी सरदारों की बेठक बुलाई गयी..
    इसके बाद से राजपूत शब्द चर्चा मे आया
    648 मे राजपूत युग की सुरवात होती हे और 1206 मे मुस्लिम सलतनत सुरवात मे इस युग का खातमा हो जाता हे!
    उत्तर भारत मे अनंगपाल तोमर प्रथम से राजपूत राजवंश की सुरवात होती ये तोमर राजवंश 1206 मे दिल्ली से खत्म हो जाते हे!
    12 वी और 13 वी सदी मे दिल्ली सलतनत के खिलाफ राजपूत राजवंशी जबरदस्त विरोध करते हे
    पृथ्वीराज चोहान का तराईन का युद्ध इसका उदाहरण हे! पृथ्वीराज चोहान की मोत के बाद भी राजपूतो का विद्रोह दिल्ली सलतनत के खिलाफ जारी रहा
    सलतनतकाल के गुलाम वंश का 90 साल का शासन मे राजपूतो के विद्रोह को दबाने मे गुजरा..
    रूहेलखंड और मेवात क्षेत्र इसके उदाहरण हे! सुल्तान नसरुद्दीन और बलबन ने जिस तरह दिल्ली के आस पास बसे मेव राजपूतो के साथ जिस तरह क्रूतात भरा दमन किया, ये दमन इतिहास के सबसे बडे नरसंहारों मे से एक हे, जिसमे लाखो मेव राजपूत मारे गये, जिनमे बडी तादात बच्चे और औरतो की थी! इतिहासकार मिनहाज के अनुसार 1248 मे मेवात के लीडर मलका राजा काकूराणा तोमर के नेतृत्व मे सलतनत के खिलाफ मेवातियो का विद्रोह सुरू होता हे
    विद्रोह इतना भंयकर तरीके से होता हे 1258 मे हांसी के किले पर काकूराणा तोमर के नेतृत्व मे मेवाती राजपूत जोरदार हमला करते हे और सलतनत का खजाना लूट लेते हे!मेवातियो की वीरता के कारण मेवात क्षेत्र 1260 तक सवतंत्र रहता हे!
    1260 को बलबन और राजा काकूराणा तोमर की बीच युद्ध होता हू, काकूराणा तोमर बलबन से हार जाता हे! 20 दिन चले इस युद्ध मे 10 मेवाती राजपूत मारे जाते हे! हार के बाद मेव मलका काकूराणा तोमर और 250 राजपूत मेव वीरो को गिरफ्तार कर लिया जाता हे!
    12 जनवरी 1260 को काकूराणा तोमर और उनके 250 सेनिको को हाथियों से कुचलवाकर सहीद कर दिया जाता हे!
    मिनहाज के अनुसार
    मेव राजा काकूराणा तोमर के दोनो पर रस्सीयो दो हाथियों के बांध दिये जाते हे और काकूराणा बहादुर को बीच मे से चीर दिया जाता हे!
    जिसकी चाकुओं से खाल निकलवाकर बलबन उसमे भुसा भरवाता हे और काकाराणा तोमर की लाश को होजरानी के गेट पर ट़ाग दिया जाता हे!
    मे काकूराणा तोमर का वंसज हू, पहले हमारे पूर्वज मेहरोली मे रहते थे, सलतनत काल के दमन के कारण मेहरोली के राजपूतो ने मेवात के अरावली क्षेत्र मे सरण ली! संद्रभ वंशवावली जग्गापोथी और इतिहासकार मिनहाज
    अफसोस इस बात का हे धर्म बदल लेने के बाद हमारे हिंदू राजपूत भाई मेवातियो को राजपूत नही मानते!
    जबकी मेवात और मेवाड दोनो शब्द एक दूसरे से जुडे हुवे हे!

    कुलमिलाकर
    राजपूत कोई जाती नही एक राजवंश हे,
    मूल जाती मेद या मेर हे

    ReplyDelete
  9. मैर मीणा मेना मीना एक है

    ReplyDelete
  10. मीना जाति का उल्लेख श्री मद्भागवत महापुराण में भी है

    ReplyDelete
  11. मेर और मीना अलग थलग हे

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

आर्य और राक्षस..

गोंड़वाना राज्य आन्दोलन..

मेवल का मीना विद्रोह