Dowry{Dahej}:- Bachane ka ek hi raasta "Saamuhik Vivah"
मित्रों नमस्कार,
माँ-बाप के द्वारा अपने बच्चे -बच्चियों का विवाह करने की धार्मिक परम्परा सदियों से चली आ रही है। चाहे परिवार संपन्न हो या गरीब, सब अपनी-अपनी सहूलियत के अनुसार विवाह करना अपना कृत्य समझकर निभाते आये है। परन्तु आज इस महंगाई के जमाने में अपनी बेटियों का विवाह करना कठिन समस्या होती जा रही है। बच्चियों को अच्छी शिक्षा दिलाना व शिक्षा के हिसाब से बच्चा ढूंढना, दहेज़ देना, फैशन के हिसाब से विवाह करना, लाखों रुपये खर्च करना कठिन होता जा रहा है। जब अपने बच्चे-बच्चियों अच्छी शिक्षा दिलाना व अपना पेट पालना मुश्किल हो रहा है तो विवाह में इन आडम्बरों के लिए खर्चा कहा से आएगा। इस दहेज़ व शादियों में फिजूलखर्ची आडम्बरों से बचने का एक रास्ता है -- "सामूहिक विवाह", जिसमे सारा झंझट मिट जाता है। न दहेज़ देने की चिंता और न टेंट, हलवाई नाना प्रकार के दिखावा की चिंता है।
वैसे आज सामूहिक विवाह सभी समाजों में प्रचलित हो रहा है। परन्तु हमारे "आदिवासी मीणा {मीना}" समाज में कम है। सामूहिक विवाह में थोड़ा रूप बदल गया है, वह है एक ही जगह पर कई जोड़ों का विवाह संपन्न होना, नहीं तो हमारे समाज में जो आखातीज का विवाह होता था वह भी एक महत्वपूर्ण सामूहिक विवाह था, जो कई सदियों से होता आ रहा है। अन्य समाजों ने तो इसकी नक़ल की है। आखातीज का विवाह अपने-अपने घर संपन्न होते थे, उसमे सभी भाई-बंधुओं, रिश्तेदारों में अपने-अपने घर विवाह एक दिन में आखातीज के अबूझ मुहूर्त में होते थे, उसमे भी कम खर्च में विवाह होता था और गरीब आदमी अभी-भी कर रहे है, आज का सामूहिक विवाह भी उसीका रूप है।
हमारे राजस्थान में सवाई माधोपुर, दौसा, जयपुर, करौली, अलवर, टोंक, भरतपुर, कोटा आदि जिलों में सामूहिक विवाह शुरू हो रहे है। लेकिन इन आयोजनों को को अधिक विस्तार देने की आज अति-आवश्यकता है। लोगों को इस सामुदायिक विवाह के फायदे जानने की एवं अन्य लोगों में भी जाग्रति फैलाने की आवश्यकता है की, इन आयोजनों से दहेज़ जैसी भयानक बिमारी से छुटकारा सहज ही पाया जा सकता है। कृपया इसे अपनाये।
सौजन्य से- बद्री लाल चांदा {मीणा सभा पत्रिका }
meenabs1980@gmail.com

आदिवासी मीणा /मीना समाज में सामूहिक विवाह को बढ़ावा देने की जरूरत है ।
ReplyDeleteआपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया है ।
thanks...
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