आदिवासियत की रक्षा के लिए राज्य की जिम्मेदारी
विश्वभर के आदिवासी हितों के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र...
➡(अनुच्छेद-११)
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(1) आदिवासियों को अपनी संस्कृति, परम्पराओं और रीती-रिवाजों के अनुसार आचरण करने और उनके संस्कारों, परम्पराओं, रीती-रिवाजों को पुनर्जीवित करने का अधिकार है। उन्हें अपनी संस्कृति के पुरातत्वीय एवं एतिहासिक स्थलों, शिल्प तथ्यों, डिजायनों, अनुष्ठानो, प्रोधोगिकियों, और द्रश्य एवं प्रदर्शन कलाओं व साहित्य ,जैसे अतीत, वर्तमान और भविष्य की अभिव्यक्तियों को कायम रखने तथा रक्षा एवं विकास करने का अधिकार है ।
( 2) आदिवासियों की पूर्व जानकारी या सहमती के बिना, उनके कानून, परम्पराओ और रीती-रिवाजों का उल्लंघन करते हुए उनकी सांस्कृतिक, बौद्धिक, धार्मिक और आध्यात्मिक सम्पत्ति कोअगर कोई लेता है, तो राज्य सरकार आदिवासियों के साथ मिल कर असरदार तंत्रों द्वारा उसकी प्रति पूर्ति की व्यवस्था करेगी ...जिसमे पुनः वापसी भी शामिल हो सकती है ।
➡(अनुच्छेद-१२)
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(1) आदिवासियों को अपनी आध्यात्मिक और धार्मिक परम्पराओं, रीती-रिवाजों और अनुष्ठानो को प्रदर्शित करने, आचरण करने, विकसित करने और सिखने सिखाने का अधिकार है। उनको अपने धार्मिंक और संस्कृतिक स्थलों के रख-रखाव और उन स्थलों में गोपनीय रूप से जाने और अनुष्ठान करने का एवं उन पर नियंत्रण का अधिकार है। मानव अवशेषों के दुसरे देश से प्रत्यावर्तन का अधिकार है।
(2) राज्य सरकार आदिवासियों के साथ मिल कर न्यायोचित, पारदर्शी एवं असरदार तंत्रों द्वारा आदिवासियों को उनके अनुष्ठानिक स्थलों एवं मानव अवशेषों (पुरखा स्थल, पेन स्थल) तक पहुँचने में सहयोग करेगी और मानव अवशेषों को दुसरे देशों से प्रत्यावर्तन को संभव बनाने की कोशिश करेगी
साभार~सुशीला धुर्वे
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