बंगाल का विभाजन..
सन 1947 मे मो. फजहुल हक़ बंगाल के प्रधानमंत्री थे। इनके नेतृत्व मे बंगाल के ब्राह्मण नेताओं को काम करना पसंद नहीं था। इनको हटाने के लिए एक चाल चली गयी। आज भी बंगाल विभाजन के बारे में दुष्प्रचार किया जाता है, कि विभाजन का जिम्मेदार मुसलमान था। यह घोर ब्राह्मणवादी चाल है। बंगाल विभाजन के सबंध में 20 जून 1947 को मतदान किया गया था, जिसमे कुल 220 सदस्यों ने मतदान किया।
कुल 220 सदस्यों मे से 92 सदस्यों ने बंगाल के विभाजन के पक्ष मे और 128 सदस्यों ने मतदान किया, कि बंगाल का विभाजन नही होना चाहिए। कुल 220 सदस्यों में से 141 सदस्य मुसलमान और 79 सदस्य हिंदु समुदाय से थे। कुल 141 मुस्लिम सदस्यों में से 106 मुस्लिम सदस्यों ने बंगाल का विभाजन नही होना चाहिये, इसके लिए मतदान किया था और 35 मुस्लिम सदस्यों ने बंगाल विभाजन के पक्ष मे मतदान किया था। कुल 79 हिन्दू सदस्यों में से 22 हिन्दू सदस्यों ने बंगाल विभाजन नहीं होने के लिए मतदान किया था. जब्कि 57 हिन्दू सदस्यों ने बंगाल का विभाजन हो, इसके लिए मतदान किया था।
कुल 79 सदस्यों मे 57 सदस्य ब्राह्मण और सवर्ण जाति के थे, जबकि 22 सदस्य दलित समुदाय से थे। दलितों के नेता "गया नाथ विश्वास" और "शरत चंद्र विश्वास" आदि ने विभाजन का खुला विरोध किया था।
हिन्दू महासभा के अध्यक्ष डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी का कहना था "बंगाल का विभाजन निश्चित रूप से होना चाहिए बंगाल में मुस्लिम का शासन है। बंगाल का विभाजन इसलिए होना चाहिये क्योंकि मुस्लिम हिन्दू समाज का कचड़ा है."
साभार: प्रख्यात इतिहासकर प्रो० ज़ोया चटर्जी की पुस्तक- "Bengal Divided: Hindu Communalism and Partition, 1932-1947"
Comments
Post a Comment