महासुर से महादेव..
#महासुर से #महादेव बनने की वास्तविकता..🌳🌴
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
ऋग्वेद मे शिव जन (कबीले) का वर्णन है, जो हिमालय के आसपास पहाड़ी क्षेत्र में रहता था। इस जन का हर एक व्यक्ति शिव कहलाता था। इसी शिव जन में रूद्र नाम के एक व्यक्ति का जन्म हुआ। इस कारण रूद्र को शिव कहा गया। रूद्र का जन्म कब हुआ और उसके माँ बाप कौन थे इसका वर्णन वेदों में नही है।
जब आर्य-अनार्य युद्ध (देवासुर संग्राम) अर्थात ब्राह्मणों के पूर्वज देवो और आदिवासियों के पूर्वज असुरों के बीच युद्ध चल रहा था, तो इस युद्ध में आर्यो की हार होने लगी। अनार्यों ने आयों के जीते हुए भाग पर पुनः कब्ज़ा कर लिया था। आर्यो (ब्राह्मणों) की स्त्रियां, पशु, वेद भी अनार्यों के कब्जे में आ गए, तो आर्यो ने समझौता करने में ही अपनी भलाई समझी, अर्थात आर्यो ने अपनी हार को एक समझौते में बदल दिया। यह समझौता समुद्र के किनारे मंदार पर्वत के निकट किया गया। इस समझौते में अनार्यों के मुखिया राजा बलि थे तथा अनार्य शिव (रूद्र) और शेषनाग (यह कोई सर्प नही था, नागवंशी आदिवासी था) ने मध्यस्था का काम किया ।
इस समझौते में आर्यों ने अनार्यों के साथ पूर्व नियोजित छल किया... आर्यों (ब्राह्मणों) के मुखिया विष्णु ने अनार्य असुरो (आदिवासी पूर्वजों) को सुरा पिलाकर बेहोश कर दिया , फिर रूद्र को विष पिलाकर उसका खून कर दिया तत्पश्चात आर्य अपने वेद, स्त्रियां, पशु ले भागे। यह फाल्गुन मास चतुर्दशी का दिन था।
रूद्र को देखने के लिए अनार्य शिवजन के लोगों की भीड़ इकठ्ठा हुई। वे रूद्र को याद करते रहे और रात भर रोते रहे। इस तरह हर वर्ष शिव जन रात भर बैठकर रूद्र के मारे जाने का दुःख मनाने लगे और उनके गीत गाने लगे। इस प्रकार आगे चलकर इस रात्रि का नाम "शिव रात्रि" पड़ गया।
ब्राह्मणों ने आदिवासी पूर्वजों और आगे आने वाली पीढ़ियों को गुमराह करने के लिए समुद्र मंथन की मनगढ़ंत कथा बनाई और कहा, कि शिव (रूद्र)विष पीकर मरे नही थे, वे अमर हो गए थे। उन्होंने विष को गले से नीचे उतरने नही दिया इस तरह उनका गला नीला पड़ गया। इस कहानी के बाद ब्राह्मणों ने शिव का एक और नाम-नीलकंठ रख दिया जिससे लोग भ्रमित हो जाए।
भारत का इतिहास गवाह है कि गंगा नदी हिमालय से निकली है लेकिन ब्राह्मणों ने कथा गढ़ी कि गंगा नदी शिव की जटाओ से निकली है। इस तरह ब्राह्मणों ने रूद्र का एक और नाम रख दिया-गंगाधर
पशुपति की उपाधि तथागत गौतम बुद्ध को दी गयी थी। ब्राह्मणों ने नेपाल में बुद्ध मंदिर पर कब्ज़ा करके इसको शिव मन्दिर में बदला और शिव को पशुपति शिव बना दिया। इस प्रकार शिव का एक और नाम हो गया- पशुपति शिव
बारहवी शताब्दी के बाद लिंग-पुराण की रचना हुई और इन लिंग योनि की पूजा को कपोलकल्पित कहानी द्वारा शिव से जोड़ दिया गया। शिव के मुख से कहलवाया गया, कि "मेरे लिंग (शिव लिंग) की पूजा करो।" 12 ब्राह्मणवादी व्यावसायिक केन्द्रो को 'ज्योतिर्लिङ्ग' बना दिए गए....
➡आज हम अपने ही पूर्वज रूद्र (शिव) के मरण दिन को ख़ुशी के रूप में मना रहे है और ब्राह्मण बेवकूफ बनाकर धन कमा रहा है। इस दिन शिव का जन्म, शिव की शादी और समुन्द्र मन्थन का दिन बताकर इसको "महाशिव रात्रि" बताता है। शादी और जन्म तो और लोगो का भी हुआ है लेकिन कोई भी अपने शादी या जन्मदिन को रात्रि के रूप में नही मनाता है। फिर ये ही दिन रात्रि क्यों बना ...?
~©भूरसिंह मीणा
Comments
Post a Comment