आदिवासी हॉकी टीम
मिलिए भारत की पहली चैम्पियन आदिवासी हॉकी टीम से। 1890 की इस दुर्लभ ऐतिहासिक तस्वीर में रांची की वह टीम है, जिसका गठन छोटानागपुर के तत्कालीन आर्च बिशप जे. सी. व्हीटले ने किया था। व्हीटले के नेतृत्व में इस आदिवासी टीम ने एक बार नहीं पांच-पांच बार बेटन कप पर कब्जा जमाया था। 1890 से लेकर 1901 तक कोई भी टीम इससे ताज छीन नहीं सकी थी। 1928 के ओलंपिक में हॉकी की चैम्पियनशिप भारत ने झारखंड के आदिवासी खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा की कप्तानी में ही जीती थी जिन्होंने आगे चलकर भारत के आदिवासियों की राजनीतिक अगुवाई की।
हॉकी भारतीय खेल नहीं है। शुरुआती दौर में इस खेल का विकास झारखंड, बंगाल और पंजाब में हुआ। वरिष्ठ मुंडा साहित्यकार रेमिस कंडुलना के अनुसार ‘‘झारखंडी भाषाओं में हॉकी का पर्यायवाची शब्द नहीं है। आस्ट्रिक भाषा परिवार के मुंडा, हो, संताल, खड़िया खेरवार, असुर और बिरहोर लोगों के बीच हॉकी नहीं पर ‘होका’ शब्द मिलता है जिसका अर्थ होता है ‘रोकना’। उरांव लोगों के बीच हॉकी का अर्थ है मिल जुलकर रहना और खेलना। मुंडा भाषा में हॉकी स्टीक को ”कोका डंडा, फोदा सोटा और गेंद को गुलू तथा खेल को इनुंग कहा जाता है।’’
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